एक लड्डू,
एक दूब,
एक मैं,
तैयार हैं
लगाने को,
कुछ हल्दी,
कुछ चावल,
कुछ आटा,
तैयार हैं
लगाने को,
एक थाल,
एक साथ,
एक लौटा,
तैयार हैं
लगाने को,
एक पंड़ित,
एक कथा,
एक श्रोता,
तैयार हैं
लगाने को,
भोग
विलासिता का,
तिलक
संस्कृति का,
अपने
कर्मकाण्ड़ों का,
लेकिन
’मैं’,
अपनी काया,
अपना माथा,
अपना सिर,
रख आया हूँ,
एक ढाबे
वाले के यहाँ,
क्योंकि
मैंने उधार में,
पेट को
संतृप्त किया,
संस्कार
विकृति का फल,
इसीलिए
’मैं’,
अयोग्य हूँ,
यज्ञ के
लिए।