उसे काम नहीं आता,
रोज़ ऑफिस चला आता है,
जाने उसने वर्षों क्या किया,
खाली राजनीति के बल खड़ा रहा,
ये हैं शासन का ग़ुलाम,
काम इसे भी नहीं आता ,
ये ज़ुबान से भी तेज़ फिसलता है,
केंचुए से भी कम नरम,
इस आदमी की चमड़ी है,
दोस्तों!
दफ़्तर बैरंग है,
कागज़ पर हस्ताक्षर की क़ीमत,
केवल उसके सन्तोष के लिये,
घटे-बढ़े हमें क्या लेना,
शिक्षा तो आँकड़ों से चली है,
कोई न जोड़ पाया है,
बच्चों जो आज उपस्थित है ,
तुम केवल उन्हें गिनों,
जिन्हें सरकार गिनना चाहती है,
क्योंकि छूटे हुए देवताओं,
और देश के लोगों पर ही,
उसका काम आज तक टिका है,
वैसे वो करना नहीं चाहता,
समय उसे काट रहा है, या.....
वह दफ़्तर में दिनों की,
गिनती कर रहा है,
और उसे,
इंतज़ार है तबादले का।